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प्रस्तुत कविता में मैंने बाल्यावस्था की एक मूलभूत आवश्यकता को उजागर करने का प्रयास किया है, जो की भारतीय शहरों में दुर्लभ हो गयी है | ये कविता मेरे घर में घटित एक सत्य घटना पर आधारित है और मेरे 3 वर्षीय सुपुत्र मानस, जिन्हें हम दुलार में ‘बिल्लू’ भी कहते हैं,
के बालमुख से निकले एक मार्मिक प्रश्न से प्रेरित है |
‘ममता की परिभाषा‘
(1)
मानस ‘बिल्लू’ बड़े दुलारे
दादी के हैं सबसे प्यारे
बदमाशी जो भी हो जाय
सबकुछ निर्भय करते जाएँ
मम्मी क्रोधी आँख दिखाएँ
दादी के पीछे छुप जाएँ
तरह तरह से मुंह बिच्काएं
वहीँ से सबको खूब चिढ़ाएं
पिटने का जब नंबर आय
दादी होतीं सदा सहाय ||
(2)
बाबा दादी सारी पूँजी
सब तालों की उनकी कुंजी
उन संग आँगन खेल रहें हैं
छुक छुक गाड़ी ठेल रहे हैं |
टीवी का अब शौक चढ़ा है
कार्टून का नशा बड़ा है
कभी कभी फ़िल्में हो जाएँ
सब कुछ उनके मन को भाय ||
(3)
एक दिवस को फिलम में भईया
वीलेन की जब हुई कुटैय्या
मानस व्याकुल ताक रहे थे
चित्र को गहरे झाँक रहे थे
मन का रूदन जब गहराया
ममता बन वाणी में आया
मानस ने भावुक हो पूंछा
भोलेपन में भाव था ऊंचा
“पिटता कोई उधर वहां है
उसकी दादी किधर, कहाँ है?”
(4)
सबका तब चेहरा मुस्काया
दादी ने झट उन्हें उठाया
मुख पर खुब चुम्बन चिपकाया
बड़ी देर तक ह्रदय लगाया ||
(5)
मैं भी विस्मित वहीँ कहीं था
मेरे मन का भाव यही था
बिल्लू तुमने क्या कह डाला
काव्य सार कोई रच डाला |
शिशु एक बेल, वृक्ष है ममता
बनती उसकी जीवन क्षमता
बचपन को आशा ममता की
दादी परिभाषा ममता की ||
(6)
कवि इतना कोई गुनी नहीं है
क्षणिका ऐसी बुनी नहीं है
महाकवि तेरे अन्दर बैठा
कह सकता है वो ही ऐसा
बच्चों में ईश्वर रहता है
जीवन दर्शन जो कहता है
बालक राम रूप कै ध्याना
कह गए तुलसि दास विद्वाना ||
(7)
सुनो जनक जन बात हमारी
सूना बचपन मन पे भारी
भारत सी आबादी में भी
घर आँगन क्यूँ खाली खाली ?
खेल नहीं, बस बहुत खिलौने
धन वैभव सब बौने बौने
बच्चों को ऐसा दो बचपन
तन के संग संग हो पोषित मन ||
(8)
रीता घर और एकल जीवन
बचपन के ये सब हैं वीलेन
दादा दादी, नाना नानी
उस वीलेन के दुश्मन जानी |
मौसी बुआ चाचा मामा
हैं कान्हा के सखा सुदामा
झूठ नहीं, ये सत्य है उपमा
ये सब के सब खुद में उप माँ ||
21/07/2012
‘प्रदीप’
http://pradeepshukl.blogspot.cz/
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