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‘बेवक्त जगाया न करो’

कल्पना और कलम
कल्पना और कलम
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ये कविता मैंने २००१ में एक ट्रेनिंग कोर्स के दौरान लिखी | मैं, दिन भर क्लासेज के बाद शाम को आकर कमरे पर सो जाता था | मेरा डिनर  मिस न हो, इस लिए मेरा दोस्त ‘अमेय अजित अभ्यंकर’ मेरे दरवाज़े पर लात मारकर मुझे जगाता था | और मेरे खूबसूरत सपने टूट जाते थे | और इस पर वो हँस कर कहता “तुम खाली सपने देखो” | इस पर मैंने ये कविता लिखी | अमेय  को मैंने उसके सरनेम से ‘अभय’ लिखा है |


अभय, तुम मुझे बेवक्त जगाया न करो |
छीन कर मुझसे हसीन ख्वाब मेरे,
यूँ सताया न करो |
अभय, तुम मुझे बेवक्त जगाया न करो |

मेरी जिंदगी में कुछ भी नहीं,
सिर्फ ख्वाब हैं |
इस वीराने में यही सबकुछ हैं मेरा
यही असबाब हैं |
तुम इन्हें हंसी में बिखराया न करो |
अभय, तुम मुझे बेवक्त जगाया न करो |

जैसे तुम प्रिय हो,
वैसे कोई और भी प्रिय है मुझे |
बना के राह सपनों से
आता है मिलने को मुझे |
तुम बन के विलेन,
मिलन में आया न करो|
अभय, तुम मुझे बेवक्त जगाया न करो |

मैं जानता हूँ तुम अभय हो,
तुम्हे डर नहीं किसी से |
बड़े सस्ते होंगे ख्वाब तुम्हारे लिए मेरे,
मेरी तो जिंदगी है इन्ही से |
छीन कर किसी गरीब से जीने का सहारा,
उसके धैर्य को आजमाया न करो ||
अभय, तुम मुझे बेवक्त जगाया न करो |
प्रदीप

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