कल्पना और कलम
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हर खबर धोखा है आजकल अखबार में
लेखनी बिक चुकी कबकी बाज़ार में |
स्याही की बूँद बूँद मांग रही लेखनी वो
महाप्रलय घोल दे जो रक्त के संचार में |
तप रहा राष्ट्र भ्रष्टाचार के बुखार में,
काव्यालय मदमस्त है प्रेम की फुहार में |
बेटा इलाज़ लायेगा, है माँ इंतज़ार में
यौवन वक्त फूंक रहा रूप के निखार में |
कलयुग में चाह रहे द्वापर की रीति हम
द्रौपदी भयभीत है कृष्ण अवतार से |
भारती का चीरहरण करते हैं हंस हंस
राजा कलमाड़ी खुद मनमोहन के दरबार में |
प्रश्न एक की भी नहीं हैसियत तेरी जब
प्रजा तू गुलाम है, प्रजातंत्र की सरकार में |
बहरी दिल्ली हुई, है कम्पन आवश्यक
भूकंप सा बल चाहिए सदाचरण की हुंकार में |
जीवन रण में डटना अंतिम साँसों तक का
नींद उड़े दुशाशन की तेरी हर ललकार में |
प्रदीप
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