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छंद समर्पण के

कल्पना और कलम
कल्पना और कलम
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दिल लग जाये तो मैं दिलदार हूँ
वर्ना, तुम नदी उस पार, मैं इस पार हूँ |

मुझे बेंच कर आशियाना बनाने वाले
तू घर में बुजुर्ग रख, मैं बिकने को तैयार हूँ |

सादगी मन में मेरे है कि बहल जाता हूँ
लोग कहते हैं कि मैं गंवार हूँ |

जान कर मन में चोर घुसने देते हैं लोग
आप अपने, और मैं अपना पहरेदार हूँ |

किसी आत्मा की आवाज सा फीका हूँ मैं
ईर्ष्या, झूठ, दंभ आदि की बिरयानी सा, मैं कहाँ जाएकेदार हूँ ?

बेटी की तरह वोट भी कर आया हूँ मैं दान
अब तेरी चौखट पे मैं लाचार हूँ |

तेरा मिलावटी तेल नहीं, यह लहू जल रहा है मेरा
मैं ‘प्रदीप’ हूँ, तो रौशनी का जिम्मेदार हूँ |

रौशनी की मैंने कोई सीमा नहीं तय की
जो भी करीब है मेरे, मैं उसका अधिकार हूँ |

‘प्रदीप’

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